सीएए पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से की हस्तक्षेप की मांग

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सीएए पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से की हस्तक्षेप की मांग

-संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने नागरिकता संशोधन क़ानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की -संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की इंटरवेशन याचिका पर भारत ने दी कड़ी प्रतिक्रिया

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/यूएनओ/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने नागरिकता संशोधन कानून में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक इंटरवेशन याचिका दाखिल की है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बेचेलेत जेरिया ने अदालत से बतौर एमिंकस क्यूरे सुनवाई में शामिल होने की मंजूरी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की इस इंटरवेंशन याचिका पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
                       भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त ने जेनेवा में हमारे स्थाई मिशन को सोमवार शाम को ये बताया कि उनके दफ़्तर ने सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन को लेकर एक इंटरवेंशन याचिका दाखिल की है। “नागरिकता संशोधन क़ानून भारत का एक अंदरूनी मुद्दा है और क़ानून बनाने को लेकर भारतीय संसद के संप्रभु अधिकार से जुड़ा हुआ है. हमें पूरा भरोसा है कि भारत की संप्रभुता से जुड़े किसी भी मसले पर किसी विदेशी पक्ष को दखल देने का कोई हक़ नहीं है। हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून संवैधानिक रूप से वैध है और हमारे संविधानिक मूल्यों की सभी शर्तों को पूरा करता है।
                     “भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां क़ानून का शासन है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए हमारे मन में बहुत आदर है और हमें उस पर पूरा भरोसा है। हमें पूरा भरोसा है कि हमारी सच्ची और लंबे समय से चले आर रहे हैं। क़ानूनी स्टैंड को आदरणीय सुप्रीम कोर्ट समझेगा.।
मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन क़ानून की धारा 2 से 6 की संवैधानिकता पर विचार कर रहा है। ये मामला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून और प्रवासियों और शरणार्थियों पर इसके लागू होने के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाता है। नागरिकता संशोधन क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट विचार करने जा रहा है।
                     अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओं की किस तरह से व्याख्या की जाती है और उसका क्या असर होगा, इसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त की इस मामले में अहम दिलचस्पी है। इसमें क़ानून के समक्ष बराबरी और भेदभाव पर प्रतिबंध भी शामिल है और ये भी देखा जाना चाहिए कि भारत में प्रवासियों और शरणार्थियों के मानवाधिकार की सुरक्षा पर नागरिकता संशोधन क़ानून का क्या असर पड़ेगा।
                     मानवाधिकार को लेकर मुख्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर ख़ास ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है जिस पर हस्ताक्षर करने वालों में भारत भी एक है। इन समझौतों में इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, द इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन इकॉनॉमिक सोशल एंड कल्चरल राइट्स जैसे समझौते शामिल हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून मानवाधिकार के अन्य अहम मुद्दे को उठाता है। मानवाधिकार को लेकर भारत की जो प्रतिबद्धताएं हैं उसके तहत राष्ट्रीयता के नाम पर भेदभाव न करना और क़ानून के समक्ष बराबरी की बात भी आती है।
                     अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून नागरिकों और ग़ैर नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करता है और न ही ग़ैर नागरिकों के अलग-अलग समूहों के बीच. इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन इकॉनॉमिक सोशल एंड कल्चरल राइट्स के तहत कोई देश किसी व्यक्ति की क़ानूनी स्थिति को लेकर भेदभाव नहीं कर सकता है। समझौते में कहा गया है कि किसी देश के भीतर सभी लोगों को हक़ होगा चाहे वे शरण मांगने वाले हों या शरणार्थीं हों या अन्य प्रवासी और यहां तक कि अगर उनके मूल देश को लेकर स्थिति स्पष्ट न हो, तब भी उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

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