सिर्फ पौधे लगाने से नही रूकेगी ग्लोबल वार्मिंग- नेचर

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सिर्फ पौधे लगाने से नही रूकेगी ग्लोबल वार्मिंग- नेचर

-सदी के अंत तक ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में योगदान कर सकते हैं ‘नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस
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नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- नेट जीरो होने की चर्चाओं में अमूमन कार्बन को कम करने के लिए नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस या प्राकृति पर निर्भर तरीकों का जिक्र होता है। जैसे जंगलों की रक्षा और उनको बढ़ाना क्योंकि वो कार्बन सोखते हैं या इसी वजह से बड़े पैमाने पर पेड़ पौधे लगाने की पहल आदि।
               लेकिन ग्लोबल वार्मिंग को इन तरीकों से सीमित करने की संभावना बहुत कम है। नेचर में आज प्रकाशित एक नए ऑक्सफोर्ड रिसर्च के अनुसार, नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस सदी के अंत तक ही जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में योगदान कर सकते हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि, ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ोतरी को सीमित करने के लिए हमें एमिशन्स को कम करना होगा, इसके लिए अच्छे प्रबंधन और प्रकृति की बहाली कि आवशयकता के साथ साथ एनबीएस के निवेश में बढ़ोतरी करनी चाहिए जिससे भविष्य के लिए इकोसिस्टम्स और भूमि में सुधार होगा ।
               ऑक्सफोर्ड टीम ने पाया कि एनबीएस उपायों से, जिसमें इकोसिस्टम्स की सुरक्षा और बड़े पैमाने पर इसकी बहाली शामिल है और भूमि प्रबंधन में सुधार करने से ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस कि बजाय 0.1 डिग्री सेल्सियस कम होगा और अगर टारगेट 2.0 डिग्री सेल्सियस का है तो इन उपायों से केवल 0.3 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग कम कि जा सकेगी । ये तभी हासिल होगा जब 2025 के बाद, प्रति वर्ष 10 गीगाटन से अधिक सीओ 2 को खत्म किया जाएगा, ये ग्लोबल ट्रांसपोर्टेशन क्षेत्र के वार्षिक एमिशन्स से अधिक होगा जिसकी कीमत 100 डॉलर प्रति टन से कम सीओ2 की लागत पर होगी।
                इसमें जरूरी बात ये है कि, नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस धरती को एक चरम तापमान तक पहुंचने के बाद भी लंबे समय तक ठंडा रख सकते है। रिसर्चर्स  के अनुसार बेहतर परिस्थितियों में भी छठै ग्लोबल वार्मिंग को 2055 तक 0.1 सी और 2100 तक 0.4 सी कम कर सकता है। लेकिन, यह अनुमान आधारित है, वर्तमान में होने वाले जलवायु परिवर्तन के खर्च के एक छोटे से हिस्से को ही नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस के लिए दिया जाता है।
             ऑक्सफोर्ड के नेचर बेस्ड सॉल्यूशंस इनिशिएटिव के तकनीकी निदेशक सिसली ए जे गिरार्डिन के अनुसार, श्दुनिया को अब प्रकृति आधारित समाधानों में निवेश करना चाहिए जो इकोलॉजिकली सही है, सामाजिक रूप से न्यायसंगत हों, और एक सदी या उससे अधिक समय में समाज को कई लाभ देने के लिए डिजाइन किए गए हैं। उचित रूप से प्रबंधित, बहाली और सस्टेनेबल प्रबंधन से हमारी कामकाजी भूमि के संरक्षण से आने वाली कई पीढ़ियों को फायदा हो सकता है। नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस, मानव कल्याण और बायोडायवर्सिटी दोनों के लिए फायदा पहुंचाने वाले हैं और सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रकृति के साथ काम करते हैं, और उन्हें नवंबर में हुए सीओपी 26 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के आधार पर ही बनाया गया है ।
              सह-लेखक प्रोफेसर, यदविंदर मल्ही, ऑक्सफोर्ड प्रोफेसर ऑफ इकोसिस्टम साइंस, के अनुसार, जलवायु लक्ष्य जितने अधिक महत्वाकांक्षी होंगे, उतने कम समय में इस तरह के समाधान के हासिल किये जा सकते हैं जिससे पीक वार्मिंग पर भी प्रभाव पड़ेगा। प्रोफेसर माइल्स एलन कहते हैं, हालाँकि महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के कॉर्पोरेट दावे, लेकिन मध्यम अवधि की योजनाएँ जो फॉसिल फ्यूल एमिशन्स को कम करने के विकल्प के रूप में एनबीएस पर निर्भर करती हैं, वो सिर्फ एक ढेर नहीं लगती। लेकिन, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, अगर ग्लोबल वार्मिंग की जांच नहीं की जाती है, तो वाइल्डफायर और अन्य इकोलॉजिकल नुकसान नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस की प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं। इसलिए उनकी दीर्घकालिक कार्बन सिंक संभावनाएं और बायोडायवर्सिटी, इक्विटी और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों और उनके प्रभावों पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह भी है कि ग्लोबल वार्मिंग को अन्य तरीकों के माध्यम से सीमित करना चाहिए, सीओ 2 के जियोलाजिकल स्टोरेज डीकार्बोनाइजेशन तक। लेखक निवेश में वृद्धि के लिए भी कहते हैं जो कि गतिविधियों के कठोर मूल्यांकन के साथ मेट्रिक्स का उपयोग करके एनबीएस के मिश्रित और दीर्घकालिक लाभों पर विचार करते हैं।
         इस रिपोर्ट के सह-लेखक, प्रोफेसर नथालिए सेड्डन, संस्थापक ऑक्सफोर्ड के नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस के निदेशक का ये निष्कर्ष है कि एक महत्वाकांक्षी स्केलिंग-अप नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस को जल्दी से लेकिन सावधानी के साथ लागू करने की आवश्यकता है, जो एक तरह से बायोडायवर्सिटी और स्थानीय लोगों के अधिकारों का समर्थन करता है, जबकि फॉसिल फ्यूल्स को स्थिर रखते हुए कम करता है।’

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