“श्रावण और अधिकमास का संयोग“

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
September 8, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

“श्रावण और अधिकमास का संयोग“

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

कहते है कि मनुष्ययोनि अत्यंत दुर्लभ है और इस योनि में ईश्वर की कृपा मिल जाए तो जीवन सार्थक हो जाता है। हमारे पुराणों में ईश्वर को भक्तवत्सल ही बताया गया है। वे अपने भक्तों पर कृपा के लिए कुछ दुर्लभ संयोग निर्मित करते है। वर्तमान समय में श्रावण और अधिकमास का ऐसा ही संयोग विद्यमान है। श्रावण मास शिव का प्रिय माह है और अधिकमास जो पहले मल मास के नाम से जाना जाता था उसे तो श्रीहरि विष्णु ने अपना आशीर्वाद देकर पुरषोत्तममास में परिवर्तित कर दिया। श्रावण और अधिकमास संहारकर्ता शिव और सृष्टि के पालनहार नारायण की विशेष कृपा प्रदान करता है। श्रावण मास में शिवप्रिय द्रव्यावली अर्पित करने से भूतभावन, उमापति महादेव मनोवांछित फल प्रदान करते है। सभी देवताओं में शिव अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले देव है। यदि भक्त बिना उद्देश्य भी अनायास ही शिव का पूजन, वंदन और अर्चन करता है तब भी वह मुक्ति के मार्ग की ओर प्रशस्त होता है और शिव उसे कल्याण प्रदान करते है। वहीं पुरषोत्तममास में भी श्रीहरि विष्णु के निमित्त दान, पुण्य और जप करने से प्राप्त फल कई सौ गुना बढ़ जाता है।
        अधिकमास में पूजापाठ, दान-पुण्य के कई सारे प्रकार हो सकते है। जलदान, अन्नदान, वस्त्रदान, पुस्तकदान, द्रव्यदान, भोग, परिक्रमा, प्रभु का स्नान, माला जप इत्यादि किसी भी मार्ग का चयन कर हम ईश्वर के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा एवं भक्ति को प्रबलता प्रदान कर सकते है। चुकि इस माह में श्रीहरि विष्णु स्वयं विराजमान है तो भक्त अपने यथेष्ट की प्राप्ति शीघ्र एवं सुलभ मार्ग से कर सकता है। श्रावण मास में शिव सत्ता के द्वारा ही सृष्टि संचालित होती है और अधिकमास सृष्टि के पालनहार को प्रसन्न करने का समय है। यदि इस समय इन दोनों की आराधना पूर्ण भक्तिभाव एवं निष्ठा से की जाए तो हमारे लिए जीवन जीना सुलभ हो सकता है। शिव तो ध्यान की उत्कृष्ठ साधना के परिचायक है। वे सदैव अन्तर्मन की प्रसन्नता एवं आनंद को महत्व देते है। कहते है कि शिव के आराध्य श्रीराम है और श्रीराम के आराध्य महादेव है। वर्तमान समय का संयोग दोनों देवों के द्वारा अपने भक्त के मनोरथ को सिद्ध करने का उत्तम काल है।
        विष्णु को महादेव का विरोधी तो स्वप्न में भी नहीं सुहाता है वहीं महादेव सदैव राम नाम में रमण करते है। वे दोनों एक दूसरे की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होते है। अधिकमास तो प्रभु ने भक्त प्रहलाद के लिए बनाया था। किस तरीके से सच्ची पुकार पर प्रभु नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे। ईश्वरीय आराधना में भगवान हमेशा अपने भक्त की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं विश्वास को देखते है। जब भी सृष्टि के पालनहार पर किसी ने अनन्य विश्वास दिखाया है तो प्रभु सारे बंधन छोडकर सबसे पहले उसके लिए उपस्थित हुए है। उन्हीं नारायण की कृपा हम सरल मंत्र जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ नमो नारायणाय” जैसे सरल मंत्रों के जाप से प्राप्त कर सकते है। यदि हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो मात्र तुलसी दल को अर्पित कर हम नारायण की कृपा प्राप्त कर सकते है। शिव भी मात्र बेल पत्र से प्रसन्न हो जाते है।
        प्रभु सदैव भावों की माला चाहते है। कठिनाई यदि आपके जीवन में हिमालय पर्वत का रूप धारण कर ले तो हमें भी समाधान के लिए कैलाशपति पर पूर्ण विश्वास करना होगा। इसी तरह यदि जीवन में परेशानियाँ इन्द्र की तरह वज्रपात करें तो हमें गोवर्धनधारी मधुसूदन की निष्ठा पर अनन्य विश्वास करना होगा। ईश्वर ने तो प्रेम और भक्ति दोनों का ही मार्ग प्रशस्त किया है। श्रावण मास में विभिन्न शिव स्त्रोत जैसे “रुद्राष्टक”, “शिव तांडव स्तोत्र”, “शिव पंचाक्षर स्तोत्र”, “लिंगाष्टकम”, “शिव महिम्नस्तोत्र” इत्यादि के द्वारा त्रिशूलधारी नीलकंठ भगवान शिव की आराधना की जा सकती है। वहीं विष्णु उपासना में “विष्णु सहस्त्रनाम”, “रामरक्षा स्तोत्र”, “मदुराष्टकम”, “गोपाल सहस्त्रनाम” इत्यादि के द्वारा भी श्रीहरि की सहज ही कृपा प्राप्त की जा सकती है। कलयुग केवल नाम स्मरण को महत्व देता है और वर्तमान समय तो हमें ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त करने का संयोग दे रहा है, तो यथोचित पूजा-अर्चना से हम जीवन को भाव सागर से पार दिलाने वाले प्रभु के प्रति समर्पित कर सकते है।      

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox