
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/छत्तीसगढ़/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- देश में दिनो-दिन बढ़ रहे एलपीजी गैस के दाम ने गरीबों की मुसीबत बढ़ा दी है। गरीब व ग्रामीण अब एलपीजी का विकल्प तलाशने लगे हैं। ग्रामीण अंचल में लोग फिर लकड़ी के उपयोग करने लगे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में कृषि महाविद्यालय बिलासपुर ग्रामीणों को बायोगैस प्लांट के फायदों से अवगत कराने के साथ-साथ गैस प्लांट लगाने व उसके उपयोग की भी पूरी जानकारी दे रहा है। जिसके चलते अब रसोई में बायोगैस, एलपीजी का विकल्प बन रही है।
इस संबंध में जानकारी देते हुए ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि महाविद्यालय बिलासपुर के प्रोफेसर डॉ. आर के तिवारी ने बताया कि महंगी होती जा रही रसोई गैस का बायोगैस तेजी के साथ विकल्प बनती जा रही है। बायोगैस के उपयोग से वनवासियों को काफी राहत मिल रही है। इससे निकलने वाली खाद बेहद उपयोगी व भूमि के लिए भरपूर मात्रा में पोषक तत्वों की मौजूदगी रहती है। यह पर्यावरण के लिए भी काफी अनुकूल है। उन्होने बताया कि कोटा ब्लॉक के दूरस्थ अंचलों में रहने वाले वनवासियों ने काफी पहले ही बायो गैस को अपना लिया है। क्षेत्र के 12 गांवों के 158 घरों में बायोगैस संयत्र काम कर रहे हैं जिससे निकलने वाली गैस से दोनो वक्त का भोजन बन रहा है। 2 घन मीटर बायोगैस संयंत्र की स्थापना में लगभग 50 किलोग्राम गोबर की जरूरत पड़ती है इससे पांच से 8 सदस्यों के लिए भोजन बन जाता है।
उन्होने बताया कि ग्रामीण इलाकों में संयंत्र लगने से लकड़ी कटाई पर रोक लगेगी। जिससे पेड़ों का संरक्षण बढ़ेगा। साथ ही महिलाओं को धुए से मुक्ति मिलेगी। लकड़ी और कंडा के जलने से होने वाला प्रदूषण भी नहीं होगा। छत्तीसगढ़ के कोटा ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम में रहने वाले वनवासी कंडा की मदद से अपने घर की बाड़ी या फिर खाली जगह पर बायोगैस प्लांट लगाकर बायोगैस बना रहे हैं और इस गैस से दोनों वक्त आराम से भोजन बना रहे हैं। धुआं और ना ही जंगल से लकड़ी जमा करने का झंझट। खासकर बारिश के दिनों में लकड़ी और कंडे इक्ट्ठा करना बहुत ही कठिन काम है। बारिश में लकड़ी के भीगे होने के कारण भोजन बनाने में भी दिक्कत होती ह।ै मिट्टी के चूल्हे और लकड़ी से ग्रामीण महिलाओं को निजात दिलाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का संचालन भी किया जा रहा है। रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के कारण गैस सिलेंडर गरीबों के पहुंच से दूर होती जा रही है। 2 घनमीटर का संयंत्र छोटे परिवार के लिए रसोई गैस सिलेंडर का बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है। इस में प्रतिदिन 50 किलोग्राम गोबर को घोल बनाकर डालना होता है। घोल डालने के बाद गैस बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके बाद इसका उपयोग कर सकते हैं।
दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान में भी अब बायोगैस संयत्र की मांग जोर पकड़ रही है। ग्रामीण मंहगी एलपीजी की जगह बायोगैस पर ध्यान लगाने लगे है। केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत इस संयत्र को लगाने की पूरी जानकारी व वित्तिय मदद भी मिलती है।
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