
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/आगरा/शिव कुमार यादव/- लंदन में पढ़ीं और दुबई की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर चुकीं रूपाली दीक्षित के आगरा जिले की फतेहाबाद विधानसभा सीट आज काफी चर्चा में है। इस सीट पर रूपाली दीक्षित समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार बनकर चुनाव में उतरी है। रूपाली दीक्षित ने चुनाव लड़ने का फैसला उस समय लिया है जब उनके पिता समेत 4 परिजन हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।

34 साल की रूपाली ने ब्रिटेन से मैनेजमेंट स्टडीज में पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री ली है। इसके बाद दुबई में नौकरी करने लगीं और फिर पिता अशोक दीक्षित समेत परिवार के 4 लोगों को उम्रकैद की सजा हुई तो 2016 में वह स्वदेश वापस लौट आईं। फिर उनकी राजनीति में एंट्री हुई और अब सपा से चुनाव लड़ रही हैं। रूपाली की फैमिली के सभी बड़े पुरुष सदस्य जेल में बंद हैं और उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत इसी केस से हुई थी। वह जब कानून की बारीकियां नहीं समझ पाईं तो फिर लॉ की डिग्री ली। इसी दौरान वह राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल हुईं। रूपाली के पिता 75 वर्षीय अशोक दीक्षित को 2015 में सरकारी स्कूल के टीचर सुमन यादव की हत्या का दोषी ठहराया गया था। अशोक दीक्षित के खिलाफ कुल 69 आपराधिक केस दर्ज हैं, जिनमें तीन हत्या के मामले में भी शामिल हैं। अशोक दीक्षित मूल रूप से फिरोजाबाद के रहने वाले थे, लेकिन आगरा में कारोबार के चलते बस गए थे। उन्हें कोल्ड स्टोर के कारोबार के लिए जाना जाता है। हालांकि मुश्किलें तब बढ़ीं जब 2007 में सुमन यादव के मर्डर केस में उनका नाम सामने आया।
उस वक्त रूपाली दीक्षित 19 साल की ही थीं, जब उनके पिता को अरेस्ट किया गया था। भाई अभिनव दीक्षित तब 14 साल के ही थे। रूपाली कहती हैं, ’शुरुआत में परिवार के किसी भी सदस्य ने मुझे इस मामले के बारे में नहीं बताया था। हमारे पिता घर में क्यों नहीं रहते हैं। इसके बारे में पूछने पर अलग-अलग बातें बताते थे। फिर मुझे पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया गया।’ पुणे स्थित सिम्बॉयसिस इंस्टिट्यूट से ग्रैजुएशन करने के बाद वह 2009 में विदेश चली गई थीं। ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी से उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन किया था।
अपने परिवार को लेकर वह कहती हैं कि मुझे लगता था कि परिवार में कुछ तो गलत चल रहा है, लेकिन कोई भी मुझे सही बात नहीं बताता था। समय जब बीतता गया तो मुझे 2007 की घटना के बारे में पता चला। जुलाई, 2015 में अदालत ने 12 लोगों को सजा सुनाई थी, जिसमें मेरे पिता और उनके 4 भाईयों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। रूपाली कहती हैं कि इसके कुछ वक्त बाद ही मेरे पिता ने मुझसे बात की थी और कहा कि परिवार को मेरी जरूरत है। तब मैं दुबई की एक कंपनी में सीनियर एग्जीक्युटिव के तौर पर काम कर रही थी। मैंने तत्काल इस्तीफा दिया और भारत लौट आई।
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