
इंदौर/मध्य प्रदेश/सुशी सक्सेना/- वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला (तारामण्डल) गोरखपुर, उत्तर प्रदेश के खगोल विद अमर पाल सिंह के द्वारा एक संक्षिप्त खगोलीय विश्लेषण यह बात आज से लगभग हजारों वर्षों पहले की है, जब से मानव सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ है तब से आज तक मानव सभ्यताओं ने जाने या अनजाने में ही सही, लेकिन आकाश को अपने-अपने नजरियों से निहारा। चाहे हम बात करें उन प्राचीन कालीन मानव सभ्यताओं की जिन्होंने रात्रि के आकाश में टिमटिमाते आकाश दीपों को देख कर और उनसे निर्मित कुछ विशिष्ट आकार प्रकार की आकृतियों को अपने-अपने हिसाब से समय, देश, काल और परिस्थितियों में अनेकों कहानियों को भी गढ़ा। इस प्रकार, आगे आने वाली पीढ़ियों को भी निरंतर इस गूढ़ ज्ञान की धारा का विशेष लाभ, खगोलीय ज्ञान और भान के रूप में होता रहा। इस ज्ञान की अविरल धारा को आगे चलकर खगोल विज्ञान कहा गया। इस प्रकार हम पाते हैं कि तमाम भारतीय प्राचीन कालीन पर्व और त्यौहारों में भी विज्ञान सम्मिलित है, जिनमें कुछ प्राचीन तो कुछ आधुनिक वैज्ञानिक आधार भी प्राप्त होते हैं। आज हम एक प्राचीन कालीन पहलू पर बात करेंगे, जैसा कि हम जानते हैं कि परिवर्तन ब्रह्मांडीय नियम है जो होता है, हुआ था, और होता रहेगा। और होना अपरिहार्य है। उसी कड़ी में मानव सभ्यताओं ने भी समय के साथ अपने आप को ढाला है। इस बदलाव रूपी ऊबड़-खाबड़ ढलान से गुजरते हुए प्राचीन कालीन सभ्यताओं से भी समय के साथ में, आगे चलकर कुछेक रीति-रिवाजें, संस्कृति, परंपराएं और रूढ़ीवादियां छूट गईं और कुछ समय विशेष के साथ रूढ़ हो गईं। और कुछ समय के साथ परिभाषित होकर परिवर्तित हो गईं। और कुछ ख़ास ने मानवीय परंपराओं का रूप ले लिया। उनमें से एक विशेष है मकर संक्रांति और महाकुम्भ महोत्सव का संयोजन। खगोल विद अमर पाल सिंह आपको बताने जा रहे हैं इन दोनों से संबंधित कुछ ख़ास बातें, जोकि जनहित में अति महत्वपूर्ण हैं।
महाकुम्भ और मकर संक्रांति दोनों का गहरा वैज्ञानिक और खगोलीय महत्व
मकर संक्रांति और महाकुम्भ का खगोलविदों द्वारा विश्लेषण करते हुए अमर पाल सिंह बताते हैं कि इन दोनों घटनाओं का खगोलीय घटनाओं से गहरा संबंध है, जो आकाशीय पिंडों की गतिविधियों और पृथ्वी पर उनके प्रभाव में निहित है।
मकर संक्रांति: वैज्ञानिक व्याख्या
यह एक खगोलीय घटना है। खगोलविद अमर पाल सिंह के अनुसार मकर संक्रांति के पीछे का विज्ञान पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण है, जिससे हम दिन और रात का अनुभव करते हैं। हालांकि यह दिन और रात सभी स्थानों पर समान नहीं होते, यह उस स्थान पर सूर्य की किरणों की दिशा पर निर्भर करता है। पृथ्वी के दो गोलार्ध हैं – उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध। जब सूर्य की किरणें पृथ्वी के जिस भाग पर पड़ती हैं, वहीं दिन होता है। पृथ्वी के 23.5 अंश झुके होने के कारण दोनो गोलार्धों में मौसम भी अलग होते हैं।
मकर संक्रांति एक खगोलीय घटना है, जिसमें सूर्य 14-15 जनवरी के आसपास उत्तरी गोलार्ध की दिशा में बढ़ता है। इसे उत्तरायण कहा जाता है, यानी सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है। खगोल विज्ञान के अनुसार यह घटना पृथ्वी के घूर्णन के कारण घटित होती है, जिसमें सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और यह दिन उत्तरी गोलार्ध में जीवन और ऊर्जा की नई शुरुआत का प्रतीक होता है।
सौर विकिरण में परिवर्तन
सूर्य के कर्क रेखा की ओर बढ़ने से उत्तरी गोलार्ध में सौर ऊर्जा में वृद्धि होती है, जो जलवायु, कृषि और जैविक लय को प्रभावित करती है। यह परिवर्तन उत्तरी गोलार्ध में निवास करने वाले व्यक्तियों के कायाकल्प और जीवन शक्ति को बढ़ावा देता है, जैसे कि विटामिन डी का अवशोषण। इस अवधि के दौरान लोग पारंपरिक रूप से धूप सेंकते हैं या धूप में अधिक समय बिताते हैं, जिससे शरीर को अधिक विटामिन डी का उत्पादन करने में मदद मिलती है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक है।
महाकुम्भ और उसका खगोलीय आधार
महाकुंभ और इसका वैज्ञानिक आधार बहुत महत्वपूर्ण है। खगोलविद अमर पाल सिंह के अनुसार, महाकुम्भ मेला एक खगोलीय संरेखण पर आधारित है। इस मेला का आयोजन उस समय होता है जब सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं। इस खगोलीय संरेखण को देखा जाता है और इसे शुद्ध ऊर्जा के स्रोत के रूप में माना जाता है।
महाकुम्भ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है। 2025 में प्रयागराज में पूर्ण कुम्भ मेला आयोजित किया जा रहा है। यह मेला प्रत्येक 144 वर्ष में एक बार होता है, जब 12 पूर्ण कुम्भ मेलों के बाद यह आयोजन होता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति और महाकुम्भ दोनों घटनाएँ महत्वपूर्ण खगोलीय गतिविधियों के साथ संरेखित होती हैं, जो मौसमी परिवर्तनों, मानव शरीर विज्ञान और पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। यह हमारे पूर्वजों के विशिष्ट प्राचीन ज्ञान को भी दर्शाते हैं, जो खगोलीय ज्ञान को स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं के साथ एकीकृत करते हैं।
अमर पाल सिंह
खगोलविद, वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला (तारामण्डल), गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
More Stories
दिल्ली में नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण: अरविंद केजरीवाल और आतिशी को भी मिला निमंत्रण
ममता बनर्जी के ‘मृत्यु कुंभ’ बयान पर सियासी संग्राम: समर्थन और विरोध में तीखी प्रतिक्रियाएँ
अंतरिम डिविडेंड चाहिए? आज है IRCTC शेयर खरीदने का आखिरी दिन!
पाकिस्तान में 29 साल बाद खेला जाएगा कोई ICC टूर्नामेंट, ‘मिनी विश्व कप’ चैंपियंस ट्रॉफी का आज से आगाज।
दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के तेज झटके, लोगों में दहशत
संस्कृत का विरोध भारत और भारतीयता का विरोध है : प्रो. मुरलीमनोहर पाठक