
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/वाशिंगटऩ/शिव कुमार यादव/- भारत-चीन विवाद पर अमेरिका एक बयान सामने आया है जिसमें उसने चीन को पड़ोसी देशों को धमकी देने की कोशिश को लेकर आगाह करते हुए कहा है कि अमेरिका हमेशा अपने सांझेदारों के साथ खड़ा रहेगा। ये बयान ऐसे समय में आया है जब भारत-चीन की 14वें दौर की बातचीत होने को है।
अमेरिका ने कहा कि अपने पड़ोसी देशों को धमकी देने की उसकी कोशिश चिंता बढ़ाने वाली है। यहां बता दें कि भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में बीते करीब डेढ़ साल से ज़्यादा वक़्त से तनाव की स्थिति बनी हुई है। दिक्कतों को दूर करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर की बातचीत के कई दौर हो चुके है लेकिन अब तक समाधान हासिल नहीं हुआ है।
हालांकि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने बताया है, “दोनों पक्षों में बनी सहमति के मुताबिक चीन और भारत के कोर कमांडरों की बैठक 12 जनवरी को चीनी पक्ष की ओर मोल्डो मीटिंग प्वाइंट पर होगी.।“
भारत के अलावा चीन के ताइवान के साथ रिश्तों में भी ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली है। चीन ताइवान को अपना प्रांत बताता है जबकि ताइवान ख़ुद को संप्रभु देश मानता है। दक्षिणी चीन सागर को लेकर भी चीन का अपने कई पड़ोसी देशों के साथ विवाद जारी है। वहीं, पूर्वी चीन सागर में चीन का जापान के साथ विवाद है। इस बीच कई जानकार ये भी दावा करते रहे हैं कि चीन ताइवान पर अपने दावों को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ अपने टकराव का फ़ायदा उठा सकता है।
भारत और चीन के बीच होने वाली अगले दौर की बातचीत के पहले अमेरिका में व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका की इस मामले पर नज़र है। उन्होंने कहा, “हम सीमा विवाद के बातचीत और शांति पूर्ण तरीकों से तलाशे जाने वाले समाधान का समर्थन करते हैं।“उन्होंने कहा, “इस इलाक़े और पूरी दुनिया में बीजिंग के बर्ताव को हम कैसे देखते हैं इसे लेकर हमारा रुख साफ़ है। हम मानते हैं कि ये हालात को अस्थिर कर सकता है और हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की पड़ोसियों को धमकी देने की कोशिश को लेकर चिंतित हैं।“ जेन साकी ने आगे कहा, “इस मामले में हम अपने साझेदारों के साथ खड़े रहेंगे।“
यहां बता दें कि बीते साल 10 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच 13वें दौर की बातचीत हुई थी. हालांकि, इसमें गतिरोध बना रहा और कोई समाधान नहीं मिला। बातचीत के दौरान दोनों ही पक्ष कोई प्रगति हासिल करने में कामयाब नहीं हुए।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बातचीत के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों ने बताया कि उनकी ओर से जो ’सकारात्मक सुझाव’ दिए गए थे। उन्हें चीनी पक्ष ने मंजूर नहीं किया। वहीं चीन की ओर से ऐसे कोई प्रस्ताव नहीं दिए गए जिससे मामला ’आगे बढ़ सके। भारत और चीन के बीच 18 नवंबर को कूटनीतिक स्तर पर वर्चुअल बातचीत हुई थी। इसी दौरान सैन्य स्तर की बातचीत के 14वें दौर के आयोजन पर सहमति बनी थी ताकि
पूर्वी लद्दाख के जिन इलाक़ों को लेकर विवाद है, वहां डिसइनगेजमेंट प्रक्रिया को पूरा किया जा सके। पूर्वी लद्दाख इलाके में भारत और चीन की सेनाओं के बीच विवाद की शुरुआत 5 मई 2020 को हुई थी। उसके बाद 15 जून को गलवान घाटी में एक बार फिर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। इसमें दोनों तरफ़ के कई सैनिकों की मौत हुई थी। गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हुई सहमति के बाद फ़रवरी 2021 में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू की गई। सैन्य और कूटनीतिक स्तर की कई दौर की बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने पैंगोंग लेक के उत्तर और दक्षिणी तटों और गोगरा क्षेत्र से सैनिकों को पूरी तरह से हटाने (डिसइंगेजमेंट) प्रक्रिया पूरी कर ली। एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के संवेदनशील सेक्टर में दोनों देशों के 50 से 60 हज़ार सैनिक तैनात हैं। वहीं चीन का पहले से ही लद्दाख के पूर्वी इलाक़े अक्साई चिन पर नियंत्रण है। चीन लगातार यह कहता आया है कि मौजूदा हालात के लिए लद्दाख को लेकर भारत सरकार की आक्रामक नीति ज़िम्मेदार है जबकि भारत का कहना है कि उसने एलएसी पर एकतरफ़ा कार्रवाई करते हुए यथास्थिति बदल दी है।
भारत और चीन के बीच लगभग 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा है। मगर,1962 की जंग के बाद से ही इस सरहद का अधिकतर हिस्सा स्पष्ट नहीं है और दोनों ही देश इसे लेकर अलग-अलग दावे करते हैं।
भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीन के सैन्य दबदबे के बीच इस इलाक़े में आज़ादी और खुलेपन के साथ आवाजाही तय करने की हिमायत करते रहे हैं। चीन दक्षिणी चीन सागर के विवादित इलाके पर अधिकार का दावा करता है. जबकि ताइवान, फिलीपीन्स, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इस पर अपना दावा जताते हैं। चीन ने पड़ोसी देशों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य ठिकाने बना लिए हैं। ईस्ट चाइना सी में चीन और जापान के बीच विवाद है।
अमेरिका इस इलाके में अपने क्षेत्रीय सहयोगियों का समर्थन करता रहा है। अमेरिका यहां अपनी नौ सेना और वायु सेना के विमानों को भी भेजता रहा है। अमेरिका अपने कदम को चीन सागर में मुक्त आवाजाही तय करने की कोशिश से जोड़ता रहा है। अमेरिका का कहना है कि वो शांति और स्थिरता बनाए रखना चाहता है। उसकी कोशिश अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक समुद्रों की आज़ादी बरकरार रखने की है और वो किसी विवाद के ताक़त के साथ हल किए जाने का विरोध करता है। पड़ोसियों से जुड़े बयानों को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव की स्थिति भी बनती रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अक्टूबर में कहा था, “चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका ताइवान का बचाव करेगा। राष्ट्रपति बाइडन के इस बयान को ताइवान पर अमेरिका के पुराने रुख़ से अलग माना गया और बाद में व्हाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी मीडिया से कहा कि ’इस टिप्पणी को नीति में बदलाव के तौर पर नहीं लेना चाहिए। उधर ताइवान ने कहा था कि बाइडन के बयान से चीन को लेकर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आएगा।
अमेरिका में एक क़ानून है जिसके तहत ताइवान की सुरक्षा में मदद की बात कही गई है. लेकिन अमेरिका में इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वह क्या करेगा। अमेरिका के रुख़ को ’रणनीतिक पेच’ कहा जाता है। बीते साल के आखिरी महीनों में ताइवान और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया और चीन के दर्जनों लड़ाकू विमानों ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में अतिक्रमण किया था। नवंबर में बाइडन की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वर्चुअल बैठक हुई थी। इसमें राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि ताइवान की ’स्थिति में किसी भी तरह के एकतरफ़ा बदलाव का अमेरिका मज़बूती से विरोध करता है। वहीं, शी जिनपिंग ने चेतावनी देते हुए कहा कि ताइवान में ’आज़ादी का समर्थन करना आग से खेलने की तरह है और जो आग से खेलेगा वो जल जाएगा।’
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