नजफगढ़ मैट्रो न्यूज डेस्क/- हरियाणा में जाट वोटों के विभाजन को लेकर भाजपा ने खेला कर दिया है। बीते 48 घंटे में भाजपा आलाकमान के तीन बड़े फैसलों ने सभी को चौंका दिया है। दरअसल भाजपा आलाकमान ओबीसी से जाट वोट की काट निकालने के जुगाड़ में लगी है जिसे लेकर भाजपा ने खट्टर की जगह नायब सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया है। साथ ही चौधरी बिरेन्द्र सिंह के बेटे बृजेन्द्र सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वहीं दुष्यंत चौटाला से गठबंधन तोड़कर भाजपा ने ओबीसी कार्ड का बड़ा खेला कर दिया है।
हरियाणा में भाजपा अपनी एक सधी हुई रणनीति के तहत चल रही है। भाजपा ने इस बार लोकसभा में 400 पार सीट प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। जिसे लेकर भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है और नये प्रयोग भी कर सकती है। दरअसल भाजपा की रणनीति है कि अगर कांग्रेस, इनेलो और जजपा अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो जाटों के वोट तीन जगहों पर बंट जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ भाजपा गैर जाट वोटर को पूरी तरह से अपने पाले में लाने के लिए सारे प्रयोग कर रही है। इसी को लेकर भाजपा ने पिछले 48 घंटे में तीन बड़े फैसले लिये है। हालांकि अभी तक भाजपा गैर जाट वोटरों को अपना मानकर चल रही है और जाट वोटर की काट के लिए उसका पूरा इस्तेमाल भी करना चाहती है ताकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे फायदा मिल सके।
हरियाणा की राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी ने वही प्रयोग किया है, जो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किया गया था। इन तीनों राज्यों में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर नए चेहरों को मौका दिया था। अब महज 48 घंटे के अंदर, हरियाणा में मोदी की प्रयोगशाला का नतीजा सामने आया है। दो दिन में तीन बड़े घटनाक्रम हो गए। पहला, 10 मार्च को हुआ, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार लोकसभा सीट से भाजपा नाराज सांसद ब्रजेंद्र सिंह को मनाने की बजाए बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसके बाद वो कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। दूसरा और तीसरा घटनाक्रम 12 मार्च को हुआ। भाजपा ने सुबह जजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया, तो दोपहर बाद नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का एलान कर दिया। नायब सैनी, पिछड़े वर्ग से आते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इन तीनों घटनाक्रमों को अपनी पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत अंजाम दिया है।
भाजपा ने हरियाणा में अचानक नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर कई निशाने साध दिए हैं। अब मनोहर लाल खट्टर को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि खट्टर को सीएम बनाकर भाजपा ने गैर जाट वोटों को साधने का प्रयास किया था। इसमें भाजपा को काफी हद तक कामयाबी भी मिली थी। खट्टर, पंजाबी समुदाय से आते हैं। प्रदेश के शहरी क्षेत्र में पंजाबी समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। अब भाजपा ने सैनी को सीएम बनाकर पिछड़े समुदाय को साधने का प्रयास किया है। भले ही हरियाणा में सैनी समुदाय की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन वे गैर जाट वोटों का हिस्सा हैं। प्रदेश में भाजपा का फोकस, गैर जाट वोटों पर ही रहा है। पार्टी के नेताओं की सोच है कि नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा को पंजाबी, दलित, पिछड़े, ब्राह्मण, बनिया व राजपूत समुदाय का सियासी फायदा मिलेगा।
वैसे तो पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने पहले ही पार्टी को अलविदा कहने के संकेत कई बार दिये थे लेकिन फिर भी वह सत्ता सुख नही छोड़ना चाहते थे लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर है और पार्टी की तरफ से उन्हे टिकट नही मिलने का संकेत मिल चुका है तो उन्होने तुरंत पार्टी को अलविदा कह दिया और कांग्रेस में शामिल हो गये। हो सकता है भाजपा भी यही चाहती हो की किसी भी तरह हरियाणा में जाटों के वोटों का विभाजन हो जाए तो उसकी राह आसान हो जाएगी। था। इसमें खास बात है कि चौ. बीरेंद्र सिंह, जिस बात को लेकर भाजपा से नाराज चल रहे थे, उनकी वह इच्छा भी पूरी हो गई। चौ. बीरेंद्र सिंह, भाजपा और जजपा गठबंधन के खिलाफ थे। उन्होंने अक्तूबर 2023 में कहा था, यदि भाजपा-जजपा गठबंधन जारी रहा, तो वे पार्टी छोड़ देंगे। 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जजपा को अपने वोट नहीं मिलने वाले हैं। अगर भाजपा और जजपा का गठबंधन जारी रहा, तो बीरेंद्र सिंह नहीं रहेगा, ये बात साफ है।
अब भाजपा ने मंगलवार को जजपा से गठबंधन तोड़कर, चौ. बीरेंद्र सिंह की वह इच्छा पूरी कर दी, लेकिन यहां घटनाक्रम के टाइमिंग ने उन्हे पीछे छोड़ दिया। क्योंकि इससे दो दिन पहले सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने भाजपा को अलविदा कह दिया था। इसके 48 घंटे बाद भाजपा और जजपा गठबंधन तोड़ने की बात सामने आ गई। हालांकि दोपहर तक इस बाबत जजपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया था। दिल्ली में जजपा विधायकों की बैठक चल रही थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है, तीसरा घटनाक्रम मुख्यमंत्री खट्टर को बदलना रहा है।
हरियाणा में लगभग 22 फीसदी आबादी जाटों की है। पहले जाटों का झुकाव चौ. देवीलाल की पार्टी की तरफ रहा था। उसके बाद जाटों की आबादी का एक हिस्सा बंसीलाल के साथ चला गया। इस बीच जाटों ने ओमप्रकाश चौटाला का साथ दिया और वे मुख्यमंत्री बन गए। 2004 के बाद कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने जाट वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई। वे दो बार मुख्यमंत्री बने। मौजूदा समय में भी जाट वोट बैंक पर हुड्डा की मजबूत पकड़ है। ऐसे में भाजपा ने अब मुख्यमंत्री बदलकर और जजपा से गठबंधन तोड़कर, गैर जाटों में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश की है। भाजपा किसी भी तहर जाटों के वोटों को बांटना चाहती है ताकि जाट वोट एक जगह न डल पाये। इसी रणनीति के तहत भाजपा ने सारा खेला किया है। जजपा से गठबंधन तोड़ने में भी भाजपा की यही रणनीति रही। दरअसल भाजपा से गठबंधन के चलते जजपा को जाट किसी भी सूरत में वोट नही देते जिसे देखते हुए भाजपा ने जजपा से अपना नाता तोड़ लिया है ताकि जजपा अपने प्रत्याशी उतार सके और जाट वोटों में सेंध लगा सके। अब देखना यह है कि हरियाणा में जाट वोटर किसके पक्ष में झुकते हैं हालांकि मोदी के विकास की बात करे और देश का विदेशों में नाम को देखते हुए इस बार जाट वोटर भी भाजपा के पक्ष में वोट करते दिखाई दे रहे है। लेकिन यह आने वाला समय ही बतायेगा कि कांग्रेस, इनेलो और जजपा भाजपा के इस खेल का किस तरह मुकाबला करते है।
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