नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/पटना/शिव कुमार यादव/- विपक्षी एकता की बात ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही है, उलझनें भी उसी अनुपात में बढ़ती जा रही हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव अपने दम पर 80 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और टीएमसी नेता ममता बनर्जी भी अलग-अलग राय दे रहे। कांग्रेस से सभी त्याग की बात कह रहे। ऐसे में चार राज्यों में सरकार चलाने वाली कांग्रेस की उलझन बढ़ना स्वाभाविक है और पटना में नये गठबंधन की तरफ तेजी से दौड़ रही नीतीश गाड़ी पटरी से उतर सकती है या यूं कहें कि नीतीश की एकता बैठक से पहले ही नये गठबंधन में गांठ आ सकती है।
विपक्षी एकता अबूझ पहेली बन गई है। बैठक के नाम पर जिन 18 दलों की चर्चा हो रही है, उनमें सात तो सिर्फ बिहार में ही हैं। बाकी बचे आठ दलों पर दारोमदार है। उनमें भी सबके सुर मेल नहीं खा रहे। कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ बोलता है। सपा नेता अखिलेश यादव यूपी की कुल 80 में 80 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के महासचिव संदीप पांडेय अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात पहले ही कर चुके हैं। शरद पवार की पार्टी एनसीपी की अलग उलझन है। दक्षिण के राज्यों में केसी राव ने विपक्षी एकता की मुहिम से दूरी ही बना ली है। ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस को आंख दिखा ही रही हैं। रही सही कसर कांग्रेस पूरी कर रही है। तेजस्वी यादव और ललन सिंह ने साझे प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस से मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के बैठक में शामिल होने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन सच यह है कि कभी नीतीश तो कभी खरगे-राहुल को अभी लगातार फोन ही कर रहे हैं। लालू ने जब न्यौता देने के लिए खरगे को फोन किया तो उन्होंने बात ही पलट दी, यह कह कर- हैपी बर्थ डे लालू जी
अखिलेश ने कहा- सपा यूपी की सभी 80 सीट जीतेगी
समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा है कि समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में 80 की 80 सीटों पर अपनी जीत दर्ज करेगी। उन्होंने यह बयान सीतापुर के नैमिषारण्य में लोक जागरण अभियान के अंतर्गत हुए प्रशिक्षण शिविर के बाद दिया। प्रशिक्षण शिविर में अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को 2024 के चुनाव के लिए संदेश दिया है कि हर हाल में सभी सीटों पर जीत सुनिश्चित करनी है। अखिलेश यादव विपक्षी एकता की मुहिम में शामिल प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। उनसे मिलने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव विशेष विमान से लखनऊ गए थे। उसके बाद अखिलेश दिल्ली में उन दिनों रह रहे लालू यादव से मिले थे। तब से ही यह माना जा रहा है कि अखिलेश विपक्षी एकता में शामिल हैं। दरअसल अखिलेश के साथ परेशानी यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठजोड़ कर वे देख चुके हैं कि फजीहत के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। शायद इसीलिए वे पार्टी की तैयारी में पीछे रहना नहीं चाहते हैं। खैर, 23 जून में अब अधिक समय नहीं बचा है। बैठक में अगर वे शामिल होते हैं तो उनका रुख क्या होगा, यह पता चल जाएगा।
संदीप पांडेय बोले- आप अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी
पहली बार नीतीश कुमार जब विपक्षी एकता के लिए अरविंद केजरीवाल से मिले थे। उन्होंने साथ रहने का आश्वासन तो दिया था। यह भी कहा था कि पहली मुलाकात है। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हफ्ते भर के अंदर गोवा में आम आदमी पार्टी के महासचिव संदीप पांडेय ने बयान दिया कि लोकसभा का चुनाव आम आदमी पार्टी अपने दम पर लड़ेगी। अब तो केजरीवाल को खुद विपक्षी एकता की जरूरत आ पड़ी है। केंद्र के सेवा अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस से उन्हें निराशा हाथ लगी है। कांग्रेस ने अध्यादेश पर साथ देने से मना कर दिया है। विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होने का अरविंद केजरीवाल ने भरोसा दिया है, लेकिन वे आ जाएं तब बात साफ होगी कि उनकी पार्टी अलग चुनाव लड़ेगी या साथ रहेगी। वैसे पंजाब और दिल्ली में जिस तरह केजरीवाल ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनी है, उसे देख कर यही लगता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बात नहीं बनेगी।
दक्षिणी राज्यों में फंसेगा पेंच, केसीआर तो तैयार ही नहीं हैं
दक्षिण के राज्यों में तेलंगाना के सीएम और बीआरएस के नेता केसी राव ने विपक्षी एकता पर साफ चुप्पी साध ली है। आश्चर्य यह कि जिस नीतीश कुमार के महागठबंधन का सीएम बनने पर केसीआर बधाई देने पटना पहुंचे थे, अब दोनों में संवाद भी नहीं हो रहा। केसी राव के लिए तेलंगाना में कांग्रेस पुरानी दुश्मन है तो बीजेपी नये दुश्मन के रूप में सिर उठा रही है। आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू अगर बीजेपी से मिल गए तो तेलंगाना में केसीआर की मुश्किल बढ़ जाएगी। इसलिए कि नायडू की पार्टी का जनाधार तेलंगाना में भी है। कर्नाटक में जेडीएस के संस्थापक पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा के संकेत भी अच्छे नहीं। कर्नाटक में कांग्रेस से बुरी तरह हारने के बाद अब उन्हें बीजेपी में बुराई नहीं दिखती। वे तो अलल ऐलान कहते हैं कि कोई भी ऐसी पार्टी नहीं, जिसका कभी न कभी बीजेपी से रिश्ता न रहा हो।
शरद पवार का साथ मिलना पक्का, पर अजित पर शक
महाराष्ट्र में एनसीपी के नेता शरद पवार को उनकी उम्र के हिसाब से विपक्षी दलों के नेता सम्मान तो देते हैं, लेकिन वे अपनी ही पार्टी के उलझन में अटके हुए हैं। पहले उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया। फिर मनौव्वल हुआ तो मान भी गए। अब उन्होंने पार्टी में दो कार्यकारी अध्यक्ष बना कर पावर को डिसेंट्रलाइज कर दिया है। इसमें सर्वाधिक घाटे में उनके भतीजे अजित पवार हैं। वे महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जरूर हैं, लेकिन महत्वाकांक्षा उनके मन में ही है। परिवार में पावर का बंटवारा करते समय अजित पवार को शरद ने कुछ नहीं दिया। अजित पवार के बारे में कहा जाता है कि वे बीजेपी के भी संपर्क में हैं। संभव है कि लोकसभा का चुनाव करीब आने पर उनका रास्ता भी बदल जाए।
ममता बनर्जी कांग्रेस पर सिर्फ दया ही दिखा सकती हैं
बंगाल में ममता बनर्जी ने अब तक के अपने रुख से स्पष्ट कर दिया है कि विपक्षी एकता बन भी जाती है तो कांग्रेस को उनकी मर्जी से सीटें मिलेंगी। लोकसभा चुनाव के पहले तो उन्होंने कांग्रेस को ही खत्म करने का मन बना लिया है। कांग्रेस के इकलौते विधायक को तो उन्होंने तोड़ा ही है, उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के एक समर्थक की हत्या भी कर दी है। नीतीश से मुलाकात के के बाद विपक्षी एकता का उन्होंने जो फार्मूला सुझाया था, उससे भी साफ है कि ममता के मन में कांग्रेस के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। उन्होंने कहा था कि जो दल जिस राज्य में मजबूत हैं, वहां सीट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक वही करेगा। इससे पहले तो देश में कांग्रेस रहित विपक्ष की मुहिम चला चुकी हैं। यह अलग बात है कि उन्हें शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने पहले ही इस मामले में यह कह कर निराश कर दिया था कि बिना कांग्रेस देश में विपक्षी एकता की बात बेमानी है।
कांग्रेस को कभी लालू तो कभी नीतीश कर रहे हैं फोन
कांग्रेस की हालत यह है कि वह अकेले किसका-किसका मन रखे। ममता की बात माने तो उनकी दया पर ही कुछ सीटें उसे चुनाव लड़ने के लिए मिल सकती हैं। अखिलेश अगर यूपी में अकेले 80 सीटें लाने का दावा कर रहे हैं तो उनसे किस तरह की मदद की उम्मीद कांग्रेस पाले। कांग्रेस भी राजनीतिक पार्टी है। सभी उसी को त्याग करने की सलाह दे रहे हैं। इसी दुविधा में फंसी कांग्रेस ने 12 जून की बैठक में खरगे-राहुल के शामिल होने से मना कर दिया था। अब नीतीश कुमार और लालू यादव के आग्रह पर वे तैयार भी हुए हैं, लेकिन अखिलेश के बयान के बाद फैसला बदल जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
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