नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नजफगढ़/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/– गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर नजफगढ़ क्षेत्र में जगह-जगह भजन-कीर्तन व भंडारों का आयोजन किया गया जिसमे ंहजारों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस मौके पर सदभाव व भाईचारें की मिसाल भी देखने को मिली जिसमें सभी धर्मों में लोगों ने बढ़चढ़ कर भाग लेकर भंडारों में प्रसाद वितरण को लेकर अपना हाथ बंटाया।
कोरोना महामारी के चलते सब कुछ नीरस हो जाने के बाद भी लोगों में एक दूसरे के सहयोग का तार अभी भी जुड़ा हुआ है। इसका उदाहरण उस समय देखने को मिला जब टोडरमल कालोनी में आयोजित गुरू पूर्णिमा के अवसर पर सर्वधर्म के लोग भंडारे में प्रसाद वितरण को लेकर सहयोग करते दिखाई दिये। लोगों ने इस भंडारे की जमकर तारीफ की और कहा कि ऐसा भाईचारा व सदभाव हमेशा बना रहना चाहिए। हालांकि गुरू पूर्णिमा पर नजफगढ़ क्षेत्र में जगह-जगह भजन कीर्तन व भंडारों का आयोजन किया गया था जिसमें लोग कोरोना से बेखौफ होकर प्रसाद ग्रहण कर रहे थै। इस संबंध में जानकारी देते हुए शिक्षाविद् व धर्मगुरू सतवीर पंडित जी ने बताया कि शास्त्रों में गुरू को भगवान से भी बड़ा माना गया है जिस प्रकार किसी भी मांगलिक समारोह की शुरूआत भगवान गणेश से होती है उसी प्रकार जीवन की शुरूआत भी गुरू से होती है।
उन्होने कहा कि हर किसी को अपने जीवन के लिए एक मार्गदर्शक की जरूरत पड़ती है, जो हमें एक अच्छे संस्कार के साथ ही अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें। हमारे पहले गुरू माता पिता होते है जो हमें इस दुनिया में लाते है। जिनकी शिक्षा हमारे जीवन में हर जगह पर काम आती है।
गुरू शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है। पारमार्थिक और सांसारिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरू कहा जाता है। माता पिता के बाद गुरू ही होता है जो हमें बिना किसी भेदभाव और निस्वार्थ भाव से हमारे जीवन को सकारात्मकता की ओर ले जाने में हमारी मदद करते हैं और हमें नकारात्मकता से दूर रखते हैं। हमारे जीवन में गुरू के महत्व को धर्म ग्रंथों में विस्तार से संस्कृत भाषा में समझाया गया है।
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और जानिये इसका महत्व
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
भावार्थः
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है। गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम।
विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम्।
ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः।।
भावार्थः
विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति (स्थायित्व) है, और विरक्ति का फल आश्रवनिरोध (बंधनमुक्ति तथा मोक्ष) है।
इस पोस्ट में हमने गुरु श्लोक संस्कृत शेयर किये है। इन श्लोकों में गुरू के महत्व को समझा जा सकता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लोकप्रिय गुरू के संस्कृत श्लोक पसंद आयेंगे, इन्हें आगे शेयर जरूर करें। आपको यह प्रेरणादायक श्लोक कैसे लगे, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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