गिर गए वो पेड़ भी जिनकी अभी बारी न थी

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March 19, 2025

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गिर गए वो पेड़ भी जिनकी अभी बारी न थी

-पत्रकारिता दिवस पर आॅनलाइन कवि गोष्ठी में अलग अंदाज में बोले कवि, कोरोना काल में सभी के स्वस्थ रहने की कामना भी की

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/बहादुरगढ़/नई दिल्ली/कृष्ण गोपाल विद्यार्थी/- कलमवीर विचार मंच द्वारा हिंदी पत्रकारिता दिवस पर ऑनलाइन कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में दिल्ली और हरियाणा के अलावा बिहार व मध्यप्रदेश के रचनाकारों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन गीतकार कृष्ण गोपाल विद्यार्थी ने किया।
                        गोष्ठी की शुरुआत कोरोनाकाल में दिवंगत हुए कलमवीरों को श्रद्धांजलि देकर की गई। इस अवसर पर गीतकार विद्यार्थी ने दिवंगत कवियों और पत्रकारों को स्मरण करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा….

जंगलों में अब से पहले तो ये बीमारी न थी,
गिर गए वे पेड़ भी जिनकी अभी बारी न थी।
दीप मंदिर के बुझाकर खुद कलंकित हो गई,
साफ है आंधी को अपनी आबरू प्यारी न थी।

कवि सतपाल स्नेही ने अपने दिल की बात कुछ यूं कही….
खुश था रात गई बस्ती से,आख़िर उग ही आया दिन,
लेकिन इनसानी अँधियारे देख बहुत घबराया दिन।
दिन की काली करतूतों पर हम तो कड़वी हंसी हंसे,
और जमाना समझा हमने हँसकर सदा बिताया दिन।

दिल्ली पुलिस में कार्यरत बिहार के चर्चित कोरोना योद्घा मनीष मधुकर ने निराशा के अंधेरों को उजाले में परिवर्तित करने का आह्वान करते हुए कहा…

हजारों यत्न करने पर कहीं इक बार पनपेगा,
अंधेरे को हराएंगे तभी उजियार पनपेगा।
के जब बोयेंगे हम इक दूसरे को दिल की माटी में,
तभी तो जिन्दगी में अपनी सच्चा प्यार पनपेगा।

हास्य कवि के के राजस्थानी ने अपनी छवि के विपरीत कर्मयोगी बनने का संदेश देते हुए कहा…

कर्म जिसकी साधना वह वक्त का रुख मोड़ देगा,
हाथ की मिटती लकीरों में लकीरें जोड़ देगा।
फूल डाली पर खिले या टूट कर बिखरे कहीं भी,
महकना आदत है उसकी महक अपनी छोड़ देगा।

गुरुग्राम के वरिष्ठ गजलकार डॉ.घमंडी लाल अग्रवाल ने जीवन के उतार चढ़ाव पर टिप्पणी करते हुए कहा…
सुखों पर उम्र दस्तख़त करती,
दुखों पर उम्र दस्तखत करती।
रेंगते-रेंगते जब हम थकते-
मुखों पर उम्र दस्तखत करती।

हिन्दी साहित्य अकादमी के मंत्री पद को सुशोभित कर रहीं कवयित्री रजनी अवनी ने भगवान राम की लीला का बखान करते हुए एक सुनाया।कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं…

छोड़ के सुख जो राजमहल का जंगल जंगल घूमे थे
मात-पिता के चरण जिन्होंने निज नयनों से चूमे थे
जिन्होंने वन की धूल को समझा कि माथे का चंदन है
ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम को वंदन है।

रीवा मध्यप्रदेश की युवा कवयित्री सरला मिश्रा ने श्रंगार रस पर आधारित रचनाएं सुनाईं।एक बानगी देखिए…

हुई हलचल तुम्हे देखा,सहज मनुहार कर बैठे,
समझ लो दिल्लगी में,खुद ही दिल पर वार कर बैठेद्य
कहो अब प्यार में मिलने की क्या तरकीब ढूंढोगे,
बिछड़ना तय रहाअपना मगर हम प्यार कर बैठेद्य

सभी मित्रों व परिजनों सहित समस्त देशवासियों के स्वस्थ सानंद रहने की कामना के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।

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