कुरूक्षेत्र लाठीचार्ज हरियाणा एनडीए में बना सियासी अखाड़ा, जेजेपी-बीजेपी गठबंधन में और बढ़ी तल्खी

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कुरूक्षेत्र लाठीचार्ज हरियाणा एनडीए में बना सियासी अखाड़ा, जेजेपी-बीजेपी गठबंधन में और बढ़ी तल्खी

-क्या जेजेपी-बीजेपी गठबंधन टूट जाएगा ? या 2024 में रहेंगे साथ

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- हरियाणा में 2024 में होने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गई है। राजनीतिक दल अब प्रदेश व देश स्तर पर होने वाली हर गतिविधि पर नजदीक से नजर बनाये हुए है। हालांकि किसान आंदोलन व जंतर-मंतर पर चले पहलवानों के आंदोलन तक तो बीजेपी-जेजेपी गठबंधन में सब ठीक चलता दिखाई दे रहा था लेकिन अचानक कुरूक्षेत्र में किसानों पर हुए लाठी चार्ज से जैसे गठबंधन की फिजा ही बदल गई और कुरूक्षेत्र लाठी चार्ज बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के लिए सियासी अखाड़ा बन गया। अब प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के टूटने में अब सिर्फ घोषणा की ही जरूरत बची है।

                   हरियाणा में पहले ही बीजेपी किसान आंदोलन, खापों की नाराजगी व पहलवानों के आंदोलन से काफी संकट में दिखाई दे रही है। और इसी के साथ अब हरियाणा के विधानसभा चुनाव भी सिर पर आ गये है। यानी अगले साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है। हरियाणा में जैसे-जैसे चुनावी तपिश बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे बीजेपी के लिए सियासी चुनौतियां भी बढ़ती जा रही है। पहलवान से लेकर किसान तक आंदोलित हैं और खाप पंचायतों की नाराजगी भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में अब बीजेपी और जेजेपी के रिश्ते भी बिगड़ने लगे हैं। इस तरह हरियाणा की सियासी जमीन बीजेपी के लिए ‘कुरुक्षेत्र’ में तब्दील होती जा रही है। दोनों दलों के बीच कई दिनों से बढ़ रही तल्खी के बाद अब ‘इस्तीफे’ की राजनीति शुरू हो चुकी है। अब ये कयास भी लगाये जाने लगे है कि क्या अब बीजेपी-जेजेपी गठबंधन टूट जाएगा? या फिर 2024 का चुनाव दोनो पार्टियां मिलकर लड़ेगीं।

कुरुक्षेत्र में किसानों पर लाठीचार्ज
हरियाणा में सूरजमुखी की खरीद को लेकर किसान नाराज हैं। मंगलवार को कुरुक्षेत्र में दिल्ली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे जाम लगाने पर किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। पहले वाटर कैनन से पानी की बौछारें छोड़ी गई, फिर बल प्रयोग कर हाईवे खाली करवा दिया गया। लाठीचार्ज में कई किसान घायल हो गए हैं तो वहीं करीब 40 से ज्यादा किसानों को पुलिस ने हिरासत में भी लिया। इस घटना के बाद किसानों की नाराजगी और भी ज्यादा बढ़ गई है। किसानों पर हुए लाठीचार्ज पर सहयोगी जेजेपी के तेवर सख्त हो गए हैं। जेजेपी के शाहबाद से विधायक रामकरण काला का इसके विरोध में बीजेपी सरकार के मंत्री बनवारीलाल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने लाठीचार्ज के फैसले को गलत बताते हुए शुगरफेड के चेयरमैन पद से इस्तीफे की घोषणा कर डाली। सहकारिता मंत्री डॉक्टर बनवारीलाल चंडीगढ़ के सेक्टर 17 में मिनी सचिवालय में पीसी कर रहे थे। इसमें उनके साथ जेजेपी विधायक राम करण काला भी थे।
                 रामकरण काला ने कहा कि सूरजमुखी पर एमएसपी की खरीद का रेट 6400 रुपए प्रति क्विंटल तय है।  इसके बाद भी किसानों से 4800 रुपए में सूरजमुखी की फसल की खरीद की जा रही है जबकि 1000 रुपए भावांतर के तहत उन्हें बोनस दिया जा रहा है। इसके बाद भी किसानों को 600 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है।

मेरी विधान सभा क्षेत्र में सरकार ने गलत किया
उन्होंने कहा कि मेरे विधानसभा क्षेत्र में जो सरकार ने किया वह गलत है। विधायक ने कहा कि सरकार ने जो कुरुक्षेत्र में किया वह जानबूझकर किया है। चुनाव सिर पर है और ऐसे समय में किसानों पर लाठीचार्ज करना बिल्कुल गलत है। मेरी इस मामले में डिप्टी सीएम से बात हुई है और शीघ्र ही इस मामले का हल निकालने को कहा है। उन्होंने लाठीचार्ज की निंदा करते कहा कि किसानों में 36 बिरादरी के लोग हैं और वह सभी पार्टी से जुड़े हुए हैं। विधायक ने बिना मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार का नाम लिए कृष्ण बेदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह सीएम के सलाहकार के इशारे पर किया गया है। यह बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकती है, क्योंकि कांग्रेस इसे लेकर मुखर हो गई है।
                 कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कुरुक्षेत्र में किसानों पर हुए लाठीचार्ज की घटना की निंदा करते हुए कहा कि क्या एमएसपी की मांग करना गुनाह है? 6400 रुपये एमएसपी की फसल 4 हजार से 5 हजार रुपये में किसान बेचने को मजबूर हैं। उन्होंने मांग की है कि गिरफ्तार किसानों को तुरंत रिहा किया जाए और एमएसपी पर सूरजमुखी की खरीद शुरू की जाए।

                 वहीं, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सूरजमुखी की खरीद के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। किसानों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं आने दी जाएगी और सरकार किसानों के साथ मजबूती के साथ खड़ी है।

हरियाणा में तेजी से बदलते सियासी समीकरण
किसानों की बढ़ती नाराज़गी
हरियाणा की सियासत में किसान अहम फैक्टर है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के लिए आगामी चुनाव में महंगी पड़ सकती है। कृषि कानून को लेकर पहले से ही किसान नाराज थे और अब सुरजमुखी की फसल की एमएसपी पर खरीद न होने के लेकर सड़क पर उतर गए हैं। ऐसे में पुलिस के द्वारा लाठीचार्ज किए जाने से किसानों की नाराजगी और भी बढ़ सकती है। कांग्रेस खुद को किसान परस्त और बीजेपी को किसान विरोधी कठघरे में खड़े करने की कोशिश कर रही है। ऐसे में बीजेपी के लिए किसानों की नाराजगी आगामी चुनाव में उठाना पड़ सकती है, क्योंकि किसान लगातार खट्टर सरकार के खिलाफ गुस्से में है और सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

पहलवान आंदोलन
भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर पहलवान एक महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। पहलवान उन्हें गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं। जंतर-मंतर से भले ही पहलवानों को उठा दिया गया हो, लेकिन अभी भी अपनी मांग को जारी रखे हुए हैं। इनमें ज्यादातर पहलवान हरियाणा के हैं, जिनमें साक्षी फोगाट, विनाश फोगाट और बजरंग पुनिया जैसे पहलवान शामिल हैं।
                  बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी ना होने से मामला सियासी रंग भी ले रहा है। विपक्षी दल खुलकर कहने लगे हैं कि बीजेपी में होने के चलते ही बृजभूषण के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हो रहा है। ऐसे में महिला पहलवानों के पक्ष में हरियाणा की खाप पंचायतें भी खुलकर खड़ी हो गई है। यह मामला अब जितने दिनों तक खिचेंगा, उतना ही बीजेपी और खट्टर सरकार के लिए हरियाणा की सियासत में मुश्किलें बढ़ाएगा।

बीजेपी-जेजेपी के रिश्ते में कड़वाहट
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार जेजेपी के समर्थन से चल रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद दोनों पार्टियां साथ आई थी, लेकिन अब उनके बीच कड़वाहट पैदा होने लगी है। एक तरफ बीजेपी नेता अकेले दम पर चुनाव में जाने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ जेजेपी दुष्यंत चौटाला को अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बता रही है। इसके अलावा उचाना विधानसभा सीट को लेकर बीजेपी और जेजेपी आमने-सामने आ गई है। दोनों ही दल चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहे हैं। इस तरह हरियाणा में एनडीए से जेजेपी अलग होने की राह पर खड़ी नजर आ रही है।
                   चौधरी बीरेंद्र सिंह का परिवार और दुष्यंत चौटाला का परिवार तो वार-पलटवार कर ही रहा था, लेकिन इस मामले ने तूल तब पकड़ लिया, जब हरियाणा बीजेपी प्रभारी बिप्लव कुमार देब ने अगले विधानसभा चुनाव में उचाना कलां से बीजेपी की प्रेमलता को अगला विधायक बता दिया, जो बीरेंद्र सिंह की पत्नी हैं। मौजूदा समय में उचाना से दुष्यंत चौटाला विधायक हैं, जो हरियाणा सरकार में डिप्टी सीएम हैं। इसे लेकर हरियाणा में जेजेपी और बीजेपी के बीच जिस तरह से बयानबाजी हो रही है, उसके चलते साफ है कि 2024 का लोकसभा-विधानसभा का चुनाव दोनों साथ नहीं लड़ेंगे। ऐसा होता है तो पांच साल तक साथ राज करने वाली बीजेपी और जेजेपी को आगे आने वाली नई सियासी चुनौतियों का सामना करना होगा।

बीजेपी का बिगड़ता समीकरण
हरियाणा में बीजेपी का सियासी समीकरण बिगड़ता जा रहा है। राज्य में करीब 28 फीसदी जाट समाज है, जो किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। और जाट समाज हरियाणा राजनीति में अपने समाज से ही मुख्यमंत्री देखना चाहता है। हरियाणा के 10 जिलों की 30 से 35 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां जाट मतदाता पूरी तरह से निर्णायक हैं। छह लोकसभा सीटों पर जाट वोटर्स हैं। हरियाणा में बीजेपी के पास ऐसा कोई जाट नेता नहीं है जो कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सियासी कद का हो। इस बार सत्ता पाने के लिए हरियाणा में कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को पूरी खुली छूट दे रखी है, जिसके चलते जाट समुदाय का भरोसा कांग्रेस के साथ दिख रहा है। मुस्लिम मतदाता भी कांग्रेस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं तो दलितों को साधने की कांग्रेस लगातार कवायद कर रही है। ये तीनों समुदाय कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हुआ तो बीजेपी के लिए राजनीतिक चुनौती खड़ी हो जाएगी। हालांकि बीजेपी हमेशा ओबीसी, दलित व ब्राहम्ण वोटों को आगे रखकर चलती रही है जिसकारण भी जाट समुदाय बीजेपी से नाराज चल रहा है। बीजेपी को अभी भी अपने इसी वोट बैंक पर पूरा भरोसा है।

कांग्रेस के छह लोकलुभावन वादे
हरियाणा में अगले साल लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस ने अभी से ही वादों की घोषणा करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने राज्य में पुरानी पेंशन योजना बहाल करने के साथ-साथ सभी को घरेलू गैस 500 रुपये प्रति सिलेंडर देने का घोषणा की है। इसके अलावा हरियाणा में 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली, दो लाख ख़ाली पड़े सरकारी पद पर भर्ती, गरीब परिवारों को 100-100 गज मुफ़्त प्लॉट, बुढ़ापा पेंशन 6000 रुपये, किसानों को एमएसपी की गारंटी और खिलाड़ियों के लिए पदक लाओ, पद पाओ का वादा किया है। कांग्रेस इन्हीं लोकलुभावन वादों के दम पर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की चुनावी जंग जीत चुकी है और दोनों ही राज्यों में बीजेपी के हाथों से उसने सत्ता छीनी है। हरियाणा में इसी एजेंडे पर कांग्रेस आगे बढ़ रही है, जो बीजेपी के लिए सियासी चुनौती बन सकता है।

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