उत्तराखंडः ये थी चमोली आपदा की वजह 2021

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October 3, 2024

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उत्तराखंडः ये थी चमोली आपदा की वजह 2021

-सामने आई चमोली हादसे की वजह, जानिए क्या कहती है 53 वैज्ञानिकों की स्टडी

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/चमौली/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/मनेाज रौतेला/- चमोली की घाटियों में 7 फरवरी को आई विनाशकारी बाढ़ (चमोली आपदा 2021) ने भारी तबाही मचाई थी। इस दुर्घटना के लिए रोंती, ऋषिगंगा और धौलीगंगा घाटियों में हिमस्खलन के साथ एक विशाल चट्टान भी थी। इस बाढ़ में दो जलशक्ति परियोजनाएं बर्बाद हो गईं। इसी के साथ पूरे इलाके के 200 से ज्यादा लोग काल के मुहाने में समा गए. इस दर्दनाक हादसे पर 53 वैज्ञानिकों की टीम ने शोध किया है।

ये थी दर्दनाक हादसे की वजह-
इस शोध से पता चला है कि इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार रोंटी, ऋषिगंगा और धौलीगंगा घाटियों में हिमस्खलन के साथ एक विशाल चट्टान भी थी। सैटेलाइट इमेज, भूकंपीय रिकॉर्ड, संख्यात्मक मॉडल, प्रत्यक्षदर्शी और वीडियो के आधार पर शोधकर्ताओं ने पाया कि घटना वास्तव में रोन्टी पीक के उत्तरी रिज से 270 मिलियन क्यूबिक मीटर चट्टान के खिसकने और ग्लेशियर की बर्फ के बहाव के कारण हुई थी। साइंसमैग में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि चमोली आपदा में चट्टानें और हिमस्खलन तेजी से एक विशाल मलबे के प्रवाह में विलीन हो गए, जिसमें 20 मीटर से बड़े पत्थर घाटी से आ रहे थे. इससे तबाही और भी खतरनाक हो गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि चमोली घाटी जैसे खतरनाक इलाकों में मानव गतिविधियों जैसे ऋषिगंगा और धौलीगंगा परियोजना से ऐसी आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में चार हजार लोग मारे गए थे या लापता हो गए थे। इस शोध में सभी उपकरणों और आंकड़ों की मदद से शोधकर्ताओं ने इस घटना के कारण को समझने की कोशिश की। घटनास्थल पर चट्टान कैसे फट गई? उस दरार से पहले बर्फ कितनी दूर आ चुकी थी, इसकी जानकारी जुटाई गई।
                        वैज्ञानिको का कहना है कि 20 मीटर मोटे ग्लेशियर ने दरारों को 500 मीटर चैड़े टुकड़ों में मिटा दिया, और फिर लगभग 270 मिलियन क्यूबिक मीटर चट्टान टूट गई, जिससे मलबे की एक नदी बन गई। शोधकर्ताओं ने वहां के लोगों से बात की और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर पाया कि तपोवन हाइड्रोपावर साइट की सुरंग में बर्फ की बड़ी चट्टानें मिली हैं. भारी चट्टान और हिमस्खलन के घाटी के तल पर पहुंचने के बाद यह प्रवाह उत्तर-पश्चिम दिशा में आगे बढ़ने लगा, इसके साथ ही घर्षण के कारण बर्फ भी पिघल गई, जिससे प्रवाह तेज हो गया और देखते ही देखते मलबे में बदल गया।

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