इस बार दिल्ली की सत्ता में कौन… ? क्या 27 साल का सूखा खत्म कर पायेगी भाजपा

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इस बार दिल्ली की सत्ता में कौन… ? क्या 27 साल का सूखा खत्म कर पायेगी भाजपा

-इसबार आम आदमी पार्टी को भाजपा-कांग्रेस की बड़ी चुनौती -कांग्रेस को दिल्ली में चमत्कार की उम्मीद

नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/अनीशा चौहान/- मंगलवार को चुनाव आयोग ने दिल्ली के चुनावों की तारीख का एलान कर दिया है। इसके साथ दिल्ली का चुनावी पारा काफी चढ़ गया है। वहीं आम आदमी पार्टी ने तो सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए है। लेकिन भाजपा ने अभी तक 29 और कांग्रेस ने 47 उम्मीदवारों का ही एलान किया है। अब देखना यह है कि दोनो पार्टियां कब तक अपने बाकि उम्मीदवारों की घोषणा करती है। लेकिन अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि इस बार दिल्ली की सत्ता पर कौन विराजमान होगा। क्या आम आदमी पार्टी अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी या फिर भाजपा पिछले 27 साल का सूखा खत्म कर सत्ता में आएगी हालांकि कांग्रेस भी इसबार दिल्ली की सत्ता का दम भर रही है। तो कौन और कैसे दिल्ली की सत्ता तक पंहुचेगा यह बड़ा सवाल है। दिल्ली की सत्ता से बाहर चल रही भारतीय जनता पार्टी इस बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। इतना ही नही इसबार भाजपा आप के भ्रष्टाचार पर चोट कर कड़ी टक्कर दे रही है। वहीं आम आदमी पार्टी भी सत्ता में बने रहने के लिए लगातार एलान पर एलान कर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में लगी है। उधर कांग्रेस भी इसबार अपने आपको चुनौती में मान रही है और मतदाताओं तक अपनी बात पंहुचाने के लिए दिल्ली न्याययात्रा कर रही है।  

दिल्ली सत्ता भाजपा के एक बड़ा सवाल है और भाजपा के लिए यक्ष प्रश्न भी है। क्योंकि 1998 से लगातार 15 साल कांग्रेस ने राज किया और 2015 से लगातार केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज है।  यह बात और है कि इसबार का चुनाव भाजपा के लिए कुछ हटकर है क्योंकि इसबार आम आदमी पार्टी जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिल्ली की सत्ता में आई थी आज उसी भ्रष्टाचार में डूबी दिखाई दे रही है। जिसकारण दिल्ली में भाजपा की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है।

आप : जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई थी…उसी में घिरी
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से पैदा हुई आप अब खुद भ्रष्टाचार की आंच में जल रही है। 2013 में अपने पहले ही चुनाव में आप ने 29.49 फीसदी वोट शेयर हासिल कर 70 में से 28 सीटें जीतकर दिल्ली में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। हालांकि भाजपा ने दिल्ली में सरकार बनाई थी जो ज्यादा दिन नही चल पाई। इसके दो साल बाद 2015 में हुए उपचुनाव में आप ने तूफानी जीत हासिल की और 54.34 फीसदी वोट शेयर के साथ करिश्मा करते हुए 67 सीटें जीत लीं। इस चुनाव में भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिलीं, कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। जिससे दोनों पार्टियों पर प्रश्न चिंह लग गया। 2020 में आप ने फिर चमत्कार किया… हालांकि इसबार सीटों की संख्या मामूली रूप से घटकर 62 रह गई। इसके बावजूद 53.57 फीसदी वोट शेयर बनाए रखा। लेकिन इसबार भाजपा 8 सीटें जीतने में कामयाब रही।

कभी खुद को बदलाव का वाहक बताने वाली पार्टी, अब भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी है। अरविंद केजरीवाल करीब छह महीने जेल में रहे। वहीं, मनीष सिसोदिया ने 17 महीने सलाखों के पीछे बिताए। पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन व राज्यसभा सदस्य संजय सिंह भी जेल गए। ये सभी फिलहाल जमानत पर हैं। चुनाव में आप के सामने भाजपा सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है।

भाजपा : राजधानी में जीत का स्वाद चखने को बेताब
उत्तर भारत में पंजाब और दिल्ली में भाजपा ने पिछले दो दशक में सत्ता का स्वाद नहीं चखा है। हालांकि पार्टी दोनो राज्यों में अपना वोट बैंक बनाए रखने में सफल रही है।1998 से लगातार विधानसभा चुनावों में हारने के बावजूद छह विधानसभा चुनावों में वोट शेयर कभी भी 32 फीसदी से कम नहीं हुआ। 2015 में सिर्फ तीन सीटें मिलने के बाद भी वोट शेयर 32.19 फीसदी था। पांच साल बाद जब आठ सीटें जीतीं, तो वोट शेयर 38.51 फीसदी हो गया। इसमें सबसे बड़ी बात यह रही कि भाजपा ने 2014 के बाद से दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर लगातार जीत दर्ज की है। 1998, 2003 और 2008 में तीन चुनाव भाजपा लगातार कांग्रेस से हारी। इसके बाद, 2013, 2015 और 2020 में आप ने उसे शिकस्त दी। कांग्रेस की शीला दीक्षित और आप के अरविंद केजरीवाल की तरह भाजपा में लोकप्रिय चेहरे की कमी हार का बड़ा कारण रही। 2015 में पार्टी किरण बेदी को जरूर लाई, लेकिन कोई करिश्मा नहीं हुआ।

कांग्रेस : अस्तित्व का संकट गहराया….पिछले चुनाव में महज 4.26 फीसदी वोट
दिल्ली में जब से आम आदमी पार्टी सत्ता में आई है तब से कांग्रेस पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। हालांकि पार्टी में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन फिर भी पार्टी दिल्ली की सत्ता तक नही पंहुच सकी। हालांकि पार्टी 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई, पर लोकसभा चुनावों में सात में सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। हालांकि, नवंबर, 1998 में विस चुनावों में 47.76 फीसदी वोट के साथ 52 सीटें जीतीं और शीला दीक्षित 15 साल सीएम रहीं। लेकिन 2013 में कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी के सामने सरेंडर कर दिया और पार्टी सिर्फ 8 सीटें ही जीत पाई जिसके बाद से लगातार पार्टी गर्त में जाती गई और एक समय ऐसा भी आया जब 66 में से 62 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नही बचा सके और पार्टी एक भी सीट नही जीत पाई।

दिल्ली में पार्टी के पास कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं…संगठन बिखर चुका  वोट बैंक भी नहीं
पार्टी नेता के मानते हैं कि 2013 में की गई गलती आज तक भारी पड़ रही है। आप ने कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक मुस्लिमों को कांग्रेस से तोड़ दिया। लेकिन इस बार पार्टी के युवा नेता देवेन्द्र यादव ने दिल्ली में न्याय यात्रा के तहत कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश की है। लेकिन फिर भी पार्टी नेता आप के मुकाबले में अपने आप को नही देख पा रहे हैं। उनके मुताबिक सिर्फ आप ही भाजपा का मुकाबला कर सकती है। कांग्रेस असमंजस में है। गठबंधन से इन्कार के बावजूद आलाकमान केजरीवाल को निशाना बनाने के खिलाफ है। केजरीवाल के खिलाफ अजय माकन को प्रेस कॉन्फ्रेंस तक रद्द करनी पड़ी।

आप के प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा केजरीवाल
आप के लिए इस चुनाव में प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा खुद पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ही हैं। 2013, 2015 और 2020 में आप की जीत के बाद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव से पहले उन्हें शराब घोटाले में जेल जाना पड़ा। जेल से वापस आने के बाद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद आप ने नए मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी की प्रमुख नेता आतिशी को शपथ दिलवाई। मुख्यमंत्री आतिशी भी इस चुनाव प्रचार में पार्टी के लिए बड़ा चेहरा बनेंगी।  इसके साथ ही मनीष सिसोदिया, संजय सिंह जैसे चेहरे भी पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे।

भाजपा के लिए प्रधानमंत्री मोदी ही होंगे प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा
दिल्ली चुनाव में भाजपा के प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे। पीएम मोदी दिल्ली में कई रैलियां करते भी नजर आएंगे। गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ स्थानीय नेताओँ में प्रवेश वर्मा, रमेश बिधुड़ी से लेकर बांसुरी स्वराज तक अपने-अपने इलाके में पार्टी की जीत के लिए जोर लगाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली सीट से मैदान में हैं। इसी तरह मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ पार्टी ने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को कालकाजी सीट से उतारा है। बिधूड़ी हाल ही में आतिशी को लेकर एक विवादास्पद टिप्पणी करके चर्चा में आए हैं।

राहुल-प्रियंका पर होगा कांग्रेस का दारोमदार
कभी दिल्ली की सत्ता पर अकेले राज करने वाली कांग्रेस आज दिल्ली में अपनी जमीन तलाशने के लिए काफी संघर्ष कर रही है। इस चुनाव में पार्टी के प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ही होंगे। हालांकि, अब तक दोनों ही प्रचार से दूर रहे हैं। स्थानीय चेहरों में प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव, अलका लांबा, संदीप दीक्षित जैसे चेहरे अपने-अपने इलाके में पार्टी को जीत दिलाने के लिए जोर लगाएंगे।  

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