
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ जी का विशेष स्नान होता है। साल भर में किया जाने वाला यह स्न्नान भगवान जगन्नाथ के प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में किया जाता है। इसे ‘स्नान यात्रा उत्सव’ के रूप में जगन्नाथ पुरी के साथ-साथ देश-दुनिया के सभी इस्कॉन मंदिरों में मनाया जाता है। इस्कॉन द्वारका श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में भगवान जगन्नाथ का स्नान यात्रा उत्सव इस वर्ष 11 जून बुधवार को मनाया गया।

इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ जी के प्राकट्य से जुड़ी कथा का वर्णन भागवत सत्र में किया गया। उत्सव के उपलक्ष्य में पूरे मंदिर को अनेक प्रकार के सुगंधित फूलों व रंगोली से सजाया गया। शाम साढ़े चार बजे से हरिनाम संकीर्तन के साथ उत्सव का शुभारंभ हुआ, जिसमें विभिन्न वैष्णवों द्वारा हरि नाम की महिमा का गुणगान किया गया। शाम 5 बजे भगवान जगन्नाथ को लेकर मंदिर की परिक्रमा लगाई गई। शाम साढ़े 5 बजे महा अभिषेक किया गया वहीं शाम 5 बजे से ही मंदिर प्रांगण में ‘आनंद बाजार उत्सव’ भी आयोजन किया गया, जिसमें उड़िया के अनेक व्यंजन प्रस्तुत किए गए। इसमें खाजा, गाजा, लड्डू, जीरा लड्डू, मगज लड्डू, खूरमा, काकरा, थाली खिचड़ी आदि शामिल रहे।
शाम साढ़े 5 बजे जगन्नाथ पुरी धाम के दिव्य कुएँ का विशेष जल से भगवान का महा अभिषेक किया गया। स्नान के पश्चात उनका सुगंधित फूलों से अभिषेक किया गया। शाम साढ़े सात बजे भगवान को विशेष उड़िया भोग अर्पित किए गए। तत्पश्चात महाआरती की गई। फिर सबने प्रसादम ग्रहण किया।
बॉक्स मैटर
आखिर जगन्नाथ जी ने गजवेश क्यों धारण किया!
भगवान को प्राप्त करने के लिए भक्ति के साथ-साथ भावों की भी महत्ता बताई गई है। जब अपने मनोभावों को उजागर करते हुए जगन्नाथ जी के एक भक्त ने अपनी आस्था और श्रद्धा प्रकट की तो भगवान अपने भक्त के सामने ही झुक गए। उस भक्त का नाम है गणपति भट्ट जो परम बह्म का उपासक था। वह भगवान के दर्शन करने जगन्नाथ पुरी पहुँचा। अत्यधिक शास्त्रों को पढ़ने के बाद उसके मन में धारणा बैठ गई थी कि परम बह्म की सूँड़ होती है लेकिन जब ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वह पुरी में आया और देखा कि अरे, इनकी तो सूँड़ ही नहीं है, अतः यह परम ब्रह्म नहीं हो सकते। यह सोच कर वह वहाँ से वापस जाने लगा, तब भगवान को यह देखकर निराशा हुई कि उनका एक परम भक्त निराश होकर वापस जा रहा है और तब भगवान जगन्नाथ जी ने उसे एक ब्राह्मण के वेश में आकर कहा कि आप दोबारा भगवान के दर्शन के लिए जाओ और यही परम बह्म हैं। अतः अपने परम भक्त के लिए भगवान ने गज वेश धारण किया। ब्राह्मण को गजवेश का दर्शन कराने के बाद वो मुक्त हो करके भगवान के विग्रह में लीन हो गए। तब से हर स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ और बलदेव का गज रूप प्रदर्शित होता है और सुभद्रा महारानी का कमल का श्रृंगार होता है। इसे देखकर भक्तगत बहुत प्रसन्न होते हैं क्योंकि साल में एक बार ही भगवान का यह रूप देखने को मिलता है।
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